"चेन्नई ‘ओल्ड एक्सप्रेश न’ "
यात्रीगण कृप्या ध्यान
दें... 7th क्लास
में था मै जब पहली बार अकेले ट्रेन से मुझे मामा के यहां जाना था.. पापा के मुंह से
सुनी अपनी date of birth के हिसाब से उस वक्त मेरी उम्र 12-13 साल रही होगी। फोन पर तो मैने बड़े चौड़ से कह दिया कि.. अरे..कोई
दिक्कत नहीं मामू मै आराम से पहुंच जाउंगा.. आखिर सवाल अब होठों के ऊपर दिखने वाली
हल्की-हल्की मूछों का था.. पर असल में मेरी सिट्-पिट्टी गुम थी... मन में सैकड़ों सवालों
के बीच ये सवाल सबसे अहम था कि अगर मै ग़लत ट्रेन में चढ़ गया तो क्या होगा.. गाहे-बगाहे
मुहल्ले की आंटीयों के मुहं से ग़लत ट्रेन पकड़ लेने से हुई दिक्कतों के बारे में कई
सच्चे-झूठे किस्से सुन चुका था...... खैर ग़लत ट्रेन पर सवार होने से कई दिक्कतों का
सामना हो सकता है.. ये तो मुझे अपनी पहली यात्रा से पहले बखूबी मालूम हो गया... लेकिन
सही ट्रेन में बैठने का अनुभव भी क्या कभी इतना खतरनाक हो सकता है कि वो किसी 40 साल
के हलवाई की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हो जाए..?? ये
बताया चेन्नेई एक्सप्रेस ने... हलवाई यानि राहुल, राहुल
यानि शाहरूख.. आपको बता दे कि 'राहुल'
नाम से ये शाहरूख की सांतवी फिल्म है.. इससे पहले वो दिल
वाले दुल्हनिया ले जाएंगे,यश बॉस,
डर,
कभी खुशी कभी ग़म, कुछ-कुछ
होता है और दिल तो पागल है.. कर चुकें हैं।
खैर कहानी शुरू होती है..एक हलवाई(राहुल) की दुखभरी दास्तान से जो 99 साल के
बड़े हलवाई यानि कि अपने दादा जी को मन ही
मन कोसता है कि उन्होने उसकी लाइफ के 40 साल इंक्लूडिंग जवानी.. खराब कर दी.. अब उसे
इंतजार था तो बस दादा जी का विकेट गिरने का.. विकेट गिरा और दादा जी..फुर्रररररर....
राहुल को लगा कि 'बाबा मर गए और अब तो बैल बिक के रहेंगे' ..मतलब
अब वो आजाद है .. ।
इंसानी फितरत है कि
उसे किसी काम में तारीफ मिल जाए तो वो उस काम को बार-बार करने की कोशिश 0करता है..
राहुल भले ही कमीना था लेकिन था तो इंसान ही.. सो उसने भी वही इंसानी
फितरत दिखायी.. राहुल ने अपनी पुरानी फिल्म डीडीएलजे का ट्रेन वाला सीन
इतनी बार किया कि इस बार हीरोइन के साथ-साथ उसका पूरा खानदान ट्रेन में चढ़ गया.. खानदान
भी मासाअल्लाह ऐसा-वैसा नहीं..चेन्नई के हिसाब से अत्यंत सुंदर-सुडौल और धारदार देशी
हथियारों से लैस...। बस यहीं से शुरू होती है रोहित शेट्टी की कहानी.. वही फर्जी
मारधाड़..वो ढेरसारी गाड़ियों का उछलना, टूटवा-फूटना वगैरह-वगैरह..जैसा कि रोहित की हर फिल्म में होता है.. फिल्म के इस हिस्से से दीपिका पादुकोण
को छोड़ सबकुछ पुराना सा लगने लगता है.. पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह पूर फिल्म में
हीरो-हीरोइन गुंडो से बचकर भागते रहते है और आखिर में हीरो मारधाड़ कर के हीरोइन को
जीत लेता है..हैप्पी एंडिंग।
किंग ख़ान को बधाई..उनकी खुशी के लिए ये कहना
चाहुंगा कि वो आज भी अपने फेशियल एक्सप्रेशन में माहिर है.. लेकिन हुजुर
अब ये बहुत पुराने हो चुके.. आपका वही पुराना..माथे पर बल पड़ना..हकलाना..और
इमोशनल सिचुवेशन में हल्के से मुस्कराकर होठों को कपकपांना.... सब पुराना..सब
पुराना.. अरे साहब ! नई
फिल्म थी कुछ तो नया किए होते...।
फिल्म के गानो में
'अहसान नहीं तेरा प्यार मांगा है' और 'बन के तितली दिल उड़ा' ही दिल को छूने वाले
हैं..। विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है। फरहाद साज़िद
का संवाद भी बढ़िया है। एक्टिंग में तो शाहरूख और दीपीका को फुल मार्क्स...लेकिन
हॉट दीपिका साड़ी में कुछ खास नहीं लगी..हां उन्होने साउथ के एक्सेंट पर काफी मेहनत
की। और हां फिल्म के मेकअप आर्टिस्ट pompy hans को
मेरा शत शत नमन..वो वाकई शाहरूख की असल उम्र छुपाने में पूरी तरह सफल रहे।
उस दिन मै सही ट्रेन
में बैठा था और छोटी-मोटी दिक्कतो के साथ आराम से मामा के घर पहुंच गया था... चेन्नई
एक्सप्रेस भी सही ट्रैक पर है और फिल्म अपनी मंजिल यानि 200 करोड़ के आंकड़े तक शायद
पहुंच ही जाएगी... क्यूोंकि फिल्म में शाहरूख जो है.... उनकी जब तक है जान और
चेन्नई एक्सप्रेस जैसी फिल्मों को दर्शकों का ऐसा रिस्पांड मिलना, ये
बताता है कि शाहरूख अब अपना बोया हुआ काट रहें हैं।
जाते-जाते लुंगी
डांस के बारे में भी दो शब्द... शाहरूख अंकल फिल्म को हिट करने के लिए आपका
नाम ही काफी था..बेकार में रजनीकांत चाचा का नाम बीच में घुसेड़ दिए..
आप ये गाना और डांस भले ही उन्हे डेडीकेट किएं हो.. पर क्या वो वाकई खुश है... कहना
जरा मुशकिल है...। बहुत दिनों बाद हनी सिंह को कोई गंदा रैप करते सुना।
PS-- "और वैसे भी दादा जी ऑल इंडिया रेडियो से लेकर ट्विटर के जमाने
तक जिंदा रहें है..वो एक अच्छीखासी उम्र जीकर गए हैं..और क्या चाहिए।"
(राहुल-- दादा जी के
मरने परः)
Omg
ReplyDeleteIts owsme year
Kya likha h
Gud