“नहीं..मैं आसाराम नहीं”
चारों तरफ हंगामा है..
आसाराम बापू को लेकर.. बाबाओं को लेकर... उनके कृत्य एंव कार्यों का लेखाजोखा तो हर
किसी के जब़ान पर ऐसे रटे हुएं है मानो स्कूल की कविता..। टीवी से लेकर ट्वीटर तक..
अखबार ले सेकर रेडियो तक.. फेसबुक पर भी आसाराम बाबू की अजब-गजब तस्वीरे अपलोड की जा
रही है...रजनीकांत छोड़ अब बाबाऔं पर जोक बन रहें है.. लेकिन इन सब के बीच बाबाओं से
संबधित एक अहम पहलू छूट रहा है....
मै खुद एक ऐसे घर-परिवार में पला-बढ़ा जहां की दीवारों
पर आपको सहजता से बाबाओं की तस्वीर टंगी मिल जाएंगी..घर के एक छोटे से मंदिर में धूपबत्ती,फूल
और कपूर के साथ-साथ कंठी और माला भी मिल जाएगा। आश्रम, सत्संग
और समागम..इन सबसे पुराना नाता है.. गुरू पर्व से लेकर होली-दीवाली और जन्माष्टमी जैसे
कई पर्व मैने आश्रम में भी मनाए है।
सच है बचपन की घटनाएं
दिमाग के किसी ना किसी हिस्से पर चस्पा हो ही जाती हैं.. 90 के दशक की कुछ धुंधली सी
तस्वीर अभी भी जैसे मेरे आंखों के सामने ही है.. ये शायद 1996 की बात है..पापा स्मोक
बहुत करते थे..पूरा घर परेशान था..हम इलाहाबाद में एक समागम में शामिल होने गए थे..पापा
पहली बार ऐसे किसी बाबा के समागम में शामिल हुए थे..दो दिन बाद ना जाने पापा को क्या
हुआ मैने उन्हे ढ़ेरों सिगरेट के पैकेट फेंकते देखा..और वो बोले आज से सिगरेट बंद..बिल्कुल
बंद..।
शहर के साथ-साथ गांव-देहात
में भी बाबाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से फैल रहा था..मै अक्सर लोगों को ये कहते सुनता
था.. आज फलां बाबा मेरे सपने में आए और कहा “ बेटा
उठो.. देखों मैं आया हूं.. अब तुम ये सब दुनियाभर के पाप छोड़ो
और दीक्षा ले लो..नामधारी बन जाओ…
ये तो चौरासी लाख योनियों का मेला है..कब तक भटकेगा..इससे
बाहर निकल..मेरे पास आ..
” इस सपने के बाद अगले कुछ दिनों
में ही सपने देखने वाला व्यक्ति दीक्षा ले लेता है..शिष्य बन जाता है.. क्योंकि उसे
लगता है कि बाबा खुद उसके पास आए थे..उन्हे यूं सपनों में देखकर वो उनसे जुड़ाव महसूस
करता है। अब दीक्षा लेने के मायने
जो नहीं जानते उन्हे मोटा-मोटा बता दूं.. कि दीक्षा लेने के बाद आप किसी भी तरह का
नशा नहीं कर सकते..ना शरब ना स्मोक।
मैं ऐसे सैकड़ों परिवारों
का अदाहरण दे सकता हूं.. जहां लोग परिवार के किसी सदस्य के शराब पीने की लत से बुरी
तरह परेशान थे.. और दीक्षा लेने के बाद उसकी ये आदत छूट गयी..और उनका परिवार आज हसी-खुशी
मस्त है।
शराब से पर्शान परिवारों
की ये घटनाएं सुनने में शायद छोटी लगे और बस यूं ही सी कोई बात लगे.. लेकिन असल में
घर का एक ही कमाऊ लड़का जो शराबी निकल जाए तो परिवार के एक-एक सदस्य की जिंदगी नरक
बन जाती है। (शराब के मुद्दे पर मैं अपना स्टेटश क्लीयर कर दूं कि मेरे हिसाब से
इसका सेवन कतई बुरा नहीं..बस excess of anything is bad.. लेकिन छोटे परिवारों या ग्रामीण परिवारों में लोग limit में नहीं पीते..वहां बैठे तो जब तक लुढ़के नहीं..जाम नहीं छूटता) खैर वापस मुद्दे पर
.. तो कहने का मतलब ये है कि दीक्षा से कईयों की शराब और बाकी बुरी लतें छूट गयी।
इस पूरी गाथा का लब्बोलुआब
ये है कि इन बाबाओं ने कुछ किया हो या ना किया हो.. लेकिन अपने प्रवचन से..भजनो से
सत्संग से ऐसे कई परिवारों को रौशन कर दिया.. साथ ही इन बाबाओं ने उस जमाने से ही लोगों
को अपने क्रोध और गुस्से पर काबू करना सिखाया..जिसे
modern युग anger
management कहता है। इसके भी मेरे
पास सैकड़ों उदाहरण है, बाबाओं की गुस्से पर काबू करने की तरकीबों ने घरेलू हिंसा के
ना जाने कितने मामले यूं ही निपटा दिए।
लोग बाबाओं पर आरोप लगाते
है कि वो भक्तों से पैसा लेते है... हां.. भक्तों का पैसा बाबाओं के पास जाता है..
मै मानता हूं..लेकिन ये हमेशा एक शिष्य की श्रद्धा और आस्था होती है कि वो कितना धन
दे..और अगर वो ना भी दे तो बाबा या बाबा के आश्रम में किसी को कोई आपत्ति नहीं..कोई
आपसे जबरदस्ती पैसे नहीं ले सकता।
इतना ही नहीं उनके आश्रम
में चलने वाले भंडारों में जितना चाहे उतना खाना खा सकते हैं..बिना किसी पैसे के।
रायबरेली के पास..उतरांवा
नाम की एक जगह है..अगर मै गलत नहीं तो शायद वहां कोई खाटूराम बाबा का अस्पताल चलता
है.. आंखो का हर छोटा-बड़ा इलाज, ऑपरेशन भी वहां मुफ्त होता है। आचार्य श्री राम शर्मा
जी के हरिद्वार के शांतिकुंज चले जाएं.. किसी जन्नत से कम नहीं है वो जगह..। सत्य सांई बाबा ने लोगों के लिए क्या नहीं किया..
जिस गांव को सरकार पानी नहीं दे पायी..उसे सत्य सांई बाबा से पानी मिला।
उन सपनों को बेशक मै चमत्कार
नहीं मानता... या किसी भी बाबा के किसी भी तरह के चमत्कार को मानने से इंकार करता हूं..
ये तो psychology भी कहती है कि अक्सर आपको ऐसे सपने आते है जिनके बारे में आप बहुत ज्यादा सुनते है..या बाते करते
है..।
कुल मिलाकर आसाराम बापू
के घिनौनेपन को छोड़ दे..तो आदमी वो भी काम के थे। और सिर्फ एक आसाराम बापू के चलते
सभी बाबाओं को बदनाम करना या गाली देना सही नहीं है। गेहूं के साथ घुन भी पिसता है..
लेकिन इस संदर्भ(context) में हमें गेहूं और घुन के बीच अंतर करना ही होगा.. क्योंकि
आखिर ये लाखों लोगों की आस्था का सवाल है।