Thursday, August 29, 2013

नहीं... मै आसाराम नहीं


नहीं..मैं आसाराम नहीं

चारों तरफ हंगामा है.. आसाराम बापू को लेकर.. बाबाओं को लेकर... उनके कृत्य एंव कार्यों का लेखाजोखा तो हर किसी के जब़ान पर ऐसे रटे हुएं है मानो स्कूल की कविता..। टीवी से लेकर ट्वीटर तक.. अखबार ले सेकर रेडियो तक.. फेसबुक पर भी आसाराम बाबू की अजब-गजब तस्वीरे अपलोड की जा रही है...रजनीकांत छोड़ अब बाबाऔं पर जोक बन रहें है.. लेकिन इन सब के बीच बाबाओं से संबधित एक अहम पहलू छूट रहा है....
  मै खुद एक ऐसे घर-परिवार में पला-बढ़ा जहां की दीवारों पर आपको सहजता से बाबाओं की तस्वीर टंगी मिल जाएंगी..घर के एक छोटे से मंदिर में धूपबत्ती,फूल और कपूर के साथ-साथ कंठी और माला भी मिल जाएगा। आश्रम, सत्संग और समागम..इन सबसे पुराना नाता है.. गुरू पर्व से लेकर होली-दीवाली और जन्माष्टमी जैसे कई पर्व मैने आश्रम में भी मनाए है।
सच है बचपन की घटनाएं दिमाग के किसी ना किसी हिस्से पर चस्पा हो ही जाती हैं.. 90 के दशक की कुछ धुंधली सी तस्वीर अभी भी जैसे मेरे आंखों के सामने ही है.. ये शायद 1996 की बात है..पापा स्मोक बहुत करते थे..पूरा घर परेशान था..हम इलाहाबाद में एक समागम में शामिल होने गए थे..पापा पहली बार ऐसे किसी बाबा के समागम में शामिल हुए थे..दो दिन बाद ना जाने पापा को क्या हुआ मैने उन्हे ढ़ेरों सिगरेट के पैकेट फेंकते देखा..और वो बोले आज से सिगरेट बंद..बिल्कुल बंद..।
शहर के साथ-साथ गांव-देहात में भी बाबाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से फैल रहा था..मै अक्सर लोगों को ये कहते सुनता था.. आज फलां बाबा मेरे सपने में आए और कहा बेटा उठो.. देखों मैं आया हूं.. अब तुम ये सब दुनियाभर के पाप छोड़ो और दीक्षा ले लो..नामधारी बन जाओये तो चौरासी लाख योनियों का मेला है..कब तक भटकेगा..इससे बाहर निकल..मेरे पास आ..इस सपने के बाद अगले कुछ दिनों में ही सपने देखने वाला व्यक्ति दीक्षा ले लेता है..शिष्य बन जाता है.. क्योंकि उसे लगता है कि बाबा खुद उसके पास आए थे..उन्हे यूं सपनों में देखकर वो उनसे जुड़ाव महसूस करता है। अब दीक्षा लेने के मायने जो नहीं जानते उन्हे मोटा-मोटा बता दूं.. कि दीक्षा लेने के बाद आप किसी भी तरह का नशा नहीं कर सकते..ना शरब ना स्मोक।
मैं ऐसे सैकड़ों परिवारों का अदाहरण दे सकता हूं.. जहां लोग परिवार के किसी सदस्य के शराब पीने की लत से बुरी तरह परेशान थे.. और दीक्षा लेने के बाद उसकी ये आदत छूट गयी..और उनका परिवार आज हसी-खुशी मस्त है।
शराब से पर्शान परिवारों की ये घटनाएं सुनने में शायद छोटी लगे और बस यूं ही सी कोई बात लगे.. लेकिन असल में घर का एक ही कमाऊ लड़का जो शराबी निकल जाए तो परिवार के एक-एक सदस्य की जिंदगी नरक बन जाती है। (शराब के मुद्दे पर मैं अपना स्टेटश क्लीयर कर दूं कि मेरे हिसाब से इसका सेवन कतई बुरा नहीं..बस excess of anything is bad.. लेकिन छोटे परिवारों या ग्रामीण परिवारों में लोग limit में नहीं पीते..वहां बैठे तो जब तक लुढ़के नहीं..जाम नहीं छूटता)  खैर वापस मुद्दे पर .. तो कहने का मतलब ये है कि दीक्षा से कईयों की शराब और बाकी बुरी लतें छूट गयी।
इस पूरी गाथा का लब्बोलुआब ये है कि इन बाबाओं ने कुछ किया हो या ना किया हो.. लेकिन अपने प्रवचन से..भजनो से सत्संग से ऐसे कई परिवारों को रौशन कर दिया.. साथ ही इन बाबाओं ने उस जमाने से ही लोगों को अपने क्रोध और गुस्से  पर काबू करना सिखाया..जिसे modern युग anger management कहता है। इसके भी मेरे पास सैकड़ों उदाहरण है, बाबाओं की गुस्से पर काबू करने की तरकीबों ने घरेलू हिंसा के ना जाने कितने मामले यूं ही निपटा दिए।
लोग बाबाओं पर आरोप लगाते है कि वो भक्तों से पैसा लेते है... हां.. भक्तों का पैसा बाबाओं के पास जाता है.. मै मानता हूं..लेकिन ये हमेशा एक शिष्य की श्रद्धा और आस्था होती है कि वो कितना धन दे..और अगर वो ना भी दे तो बाबा या बाबा के आश्रम में किसी को कोई आपत्ति नहीं..कोई आपसे जबरदस्ती पैसे नहीं ले सकता।
इतना ही नहीं उनके आश्रम में चलने वाले भंडारों में जितना चाहे उतना खाना खा सकते हैं..बिना किसी पैसे के।
रायबरेली के पास..उतरांवा नाम की एक जगह है..अगर मै गलत नहीं तो शायद वहां कोई खाटूराम बाबा का अस्पताल चलता है.. आंखो का हर छोटा-बड़ा इलाज, ऑपरेशन भी वहां मुफ्त होता है। आचार्य श्री राम शर्मा जी के हरिद्वार के शांतिकुंज चले जाएं.. किसी जन्नत से कम नहीं है वो जगह..।  सत्य सांई बाबा ने लोगों के लिए क्या नहीं किया.. जिस गांव को सरकार पानी नहीं दे पायी..उसे सत्य सांई बाबा से पानी मिला।
उन सपनों को बेशक मै चमत्कार नहीं मानता... या किसी भी बाबा के किसी भी तरह के चमत्कार को मानने से इंकार करता हूं.. ये तो psychology भी कहती है कि अक्सर आपको ऐसे सपने आते है जिनके बारे में आप बहुत ज्यादा सुनते है..या बाते करते है..।
कुल मिलाकर आसाराम बापू के घिनौनेपन को छोड़ दे..तो आदमी वो भी काम के थे। और सिर्फ एक आसाराम बापू के चलते सभी बाबाओं को बदनाम करना या गाली देना सही नहीं है। गेहूं के साथ घुन भी पिसता है.. लेकिन इस संदर्भ(context) में हमें गेहूं और घुन के बीच अंतर करना ही होगा.. क्योंकि आखिर ये लाखों लोगों की आस्था का सवाल है।  

Monday, August 19, 2013

चेन्नई ओल्ड एक्सप्रेश 'न'


"चेन्नई ओल्ड एक्सप्रेश न"

यात्रीगण कृप्या ध्यान दें... 7th क्लास में था मै जब पहली बार अकेले ट्रेन से मुझे मामा के यहां जाना था.. पापा के मुंह से सुनी अपनी date of birth के हिसाब से उस वक्त मेरी उम्र 12-13 साल रही होगी।  फोन पर तो मैने बड़े चौड़ से कह दिया कि.. अरे..कोई दिक्कत नहीं मामू मै आराम से पहुंच जाउंगा.. आखिर सवाल अब होठों के ऊपर दिखने वाली हल्की-हल्की मूछों का था.. पर असल में मेरी सिट्-पिट्टी गुम थी... मन में सैकड़ों सवालों के बीच ये सवाल सबसे अहम था कि अगर मै ग़लत ट्रेन में चढ़ गया तो क्या होगा.. गाहे-बगाहे मुहल्ले की आंटीयों के मुहं से ग़लत ट्रेन पकड़ लेने से हुई दिक्कतों के बारे में कई सच्चे-झूठे किस्से सुन चुका था...... खैर ग़लत ट्रेन पर सवार होने से कई दिक्कतों का सामना हो सकता है.. ये तो मुझे अपनी पहली यात्रा से पहले बखूबी मालूम हो गया... लेकिन सही ट्रेन में बैठने का अनुभव भी क्या कभी इतना खतरनाक हो सकता है कि वो किसी 40 साल के हलवाई की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हो जाए..?? ये बताया चेन्नेई एक्सप्रेस ने... हलवाई यानि राहुल, राहुल यानि शाहरूख.. आपको बता दे कि 'राहुल' नाम से ये शाहरूख की सांतवी फिल्म है.. इससे पहले वो दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे,यश बॉस, डर, कभी खुशी कभी ग़म, कुछ-कुछ होता है और दिल तो पागल है.. कर चुकें हैं।  खैर कहानी शुरू होती है..एक हलवाई(राहुल) की दुखभरी दास्तान से जो 99 साल के बड़े हलवाई यानि कि अपने दादा जी  को मन ही मन कोसता है कि उन्होने उसकी लाइफ के 40 साल इंक्लूडिंग जवानी.. खराब कर दी.. अब उसे इंतजार था तो बस दादा जी का विकेट गिरने का.. विकेट गिरा और दादा जी..फुर्रररररर.... राहुल को लगा कि 'बाबा मर गए और अब तो बैल बिक के रहेंगे' ..मतलब अब वो आजाद है .. ।
इंसानी फितरत है कि उसे किसी काम में तारीफ मिल जाए तो वो उस काम को बार-बार करने की कोशिश 0करता है.. राहुल भले ही कमीना था लेकिन था तो इंसान ही.. सो उसने भी वही इंसानी फितरत दिखायी.. राहुल ने अपनी पुरानी फिल्म डीडीएलजे का ट्रेन वाला सीन इतनी बार किया कि इस बार हीरोइन के साथ-साथ उसका पूरा खानदान ट्रेन में चढ़ गया.. खानदान भी मासाअल्लाह ऐसा-वैसा नहीं..चेन्नई के हिसाब से अत्यंत सुंदर-सुडौल और धारदार देशी हथियारों से लैस...। बस यहीं से शुरू होती है रोहित शेट्टी की कहानी.. वही फर्जी मारधाड़..वो ढेरसारी गाड़ियों का उछलना, टूटवा-फूटना वगैरह-वगैरह..जैसा कि रोहित की हर फिल्म में होता है.. फिल्म के इस हिस्से से दीपिका पादुकोण को छोड़ सबकुछ पुराना सा लगने लगता है.. पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह पूर फिल्म में हीरो-हीरोइन गुंडो से बचकर भागते रहते है और आखिर में हीरो मारधाड़ कर के हीरोइन को जीत लेता है..हैप्पी एंडिंग।
      किंग ख़ान को बधाई..उनकी खुशी के लिए ये कहना चाहुंगा कि वो आज भी अपने फेशियल एक्सप्रेशन में माहिर है.. लेकिन हुजुर अब ये बहुत पुराने हो चुके.. आपका वही पुराना..माथे पर बल पड़ना..हकलाना..और इमोशनल सिचुवेशन में हल्के से मुस्कराकर होठों को कपकपांना.... सब पुराना..सब पुराना.. अरे साहब !  नई फिल्म थी कुछ तो नया किए होते...।
फिल्म के गानो में 'अहसान नहीं तेरा प्यार मांगा है' और 'बन के तितली दिल उड़ा' ही दिल को छूने वाले हैं..। विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है। फरहाद साज़िद का संवाद भी बढ़िया है। एक्टिंग में तो शाहरूख और दीपीका को फुल मार्क्स...लेकिन हॉट दीपिका साड़ी में कुछ खास नहीं लगी..हां उन्होने साउथ के एक्सेंट पर काफी मेहनत की। और हां फिल्म के मेकअप आर्टिस्ट pompy hans को मेरा शत शत नमन..वो वाकई शाहरूख की असल उम्र छुपाने में पूरी तरह सफल रहे।
उस दिन मै सही ट्रेन में बैठा था और छोटी-मोटी दिक्कतो के साथ आराम से मामा के घर पहुंच गया था... चेन्नई एक्सप्रेस भी सही ट्रैक पर है और फिल्म अपनी मंजिल यानि 200 करोड़ के आंकड़े तक शायद पहुंच ही जाएगी... क्यूोंकि फिल्म में शाहरूख जो है.... उनकी जब तक है जान और चेन्नई एक्सप्रेस जैसी फिल्मों को दर्शकों का ऐसा रिस्पांड मिलना, ये बताता है कि शाहरूख अब अपना बोया हुआ काट रहें हैं
जाते-जाते लुंगी डांस के बारे में भी दो शब्द... शाहरूख अंकल फिल्म को हिट करने के लिए आपका नाम ही काफी था..बेकार में रजनीकांत चाचा का नाम बीच में घुसेड़ दिए.. आप ये गाना और डांस भले ही उन्हे डेडीकेट किएं हो.. पर क्या वो वाकई खुश है... कहना जरा मुशकिल है...। बहुत दिनों बाद हनी सिंह को कोई गंदा रैप करते सुना।
PS-- "और वैसे भी दादा जी ऑल इंडिया रेडियो से लेकर ट्विटर के जमाने तक जिंदा रहें है..वो एक अच्छीखासी उम्र जीकर गए हैं..और क्या चाहिए।"
(राहुल-- दादा जी के मरने परः)

'वही पुरानी.... 'एक बात' '


एक बात जो दिल में रखी है...तेरे भी और मेरे भी.
एहसास जो बनकर बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
पुराने बैग की छोटी जेब से.. आज़ फिर वो सामने आयी है..
वो ख्वाहिश तेरे भीतर की..वो हलचल मेरे अंदर की 
ना चाहूं तो अब आती है.. याद तेरे हर पल की..
यादों की उन सिकुड़न से.. कुछ कागज़ पुराने मिले है..
सपनों की स्याही में कुछ अफसाने नज़राने मिले है...
स्याही फीकी पड़ गयी है...लेकिन हां सपने वही है..तेरे भी और मेरे भी..
वादों की लफ्फाज़ी से उसपे..एक कल की दुनिया उकेरी थी..
बाहर की आपाधापी से वाकई..वो दुनिया सुनहरी थी..
तुमने कहा था हम साथ है..ना कोई यहां है ना वहां होगा..
पर वो दुनिया शायद छोटी थी..मेरे जज़्बात तो फिर भी खुश थे..तेरे अरमान बहुतेरे थे..
तू चली गयी उस दुनिया में..जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी   
तू खो गयी थी उस दुनिया में.. जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी  
आगे आगे तू बढ़ती गयी..ना सोचा ना समझा.. कि मै तो पीक्षे ही छूट गया
वादें..सपने ..वो दुनिया.. तुझ बिन तो सब टूट गया..
हर इक पल में मै जलता था जब मुझसे मिलना छूट गया..
कैसे समझाऊं तुझे..कैसे बतलाऊं तुझे.. मुझसे जो मेरी ही अनबन थी..
ना चाहकर भी तूझसे मै दूर इतना अब जाता हूं..
समझे तू भी है जाने तू भी है..कि तुझ बिन मेरा कोई और नहीं..
समझे है तू भी है मेरी टीस को..पर अंजान बनकर खुश रहती है..
हो सकता है मै गलत था..पर उसमे भी तो चाहत तेरी ही थी.. 
मै इंतजार अब भी करता हूं..इक दिन तू वापस आएगी..
अधूरे सपनों को पूरा करने..हां उन वादों को पूरा करने.. जो तेरे भी हैं और मेरे भी.. 
एहसास जो बनकर अब तक बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
हां तुम आओगी..लौट आओगी..ज़रूर आओगी..

'वही पुरानी.... 'एक बात' '


एक बात जो दिल में रखी है...तेरे भी और मेरे भी.
एहसास जो बनकर बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
पुराने बैग की छोटी जेब से.. आज़ फिर वो सामने आयी है..
वो ख्वाहिश तेरे भीतर की..वो हलचल मेरे अंदर की 
ना चाहूं तो अब आती है.. याद तेरे हर पल की..
यादों की उन सिकुड़न से.. कुछ कागज़ पुराने मिले है..
सपनों की स्याही में कुछ अफसाने नज़राने मिले है...
स्याही फीकी पड़ गयी है...लेकिन हां सपने वही है..तेरे भी और मेरे भी..
वादों की लफ्फाज़ी से उसपे..एक कल की दुनिया उकेरी थी..
बाहर की आपाधापी से वाकई..वो दुनिया सुनहरी थी..
तुमने कहा था हम साथ है..ना कोई यहां है ना वहां होगा..
पर वो दुनिया शायद छोटी थी..मेरे जज़्बात तो फिर भी खुश थे..तेरे अरमान बहुतेरे थे..
तू चली गयी उस दुनिया में..जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी   
तू खो गयी थी उस दुनिया में.. जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी  
आगे आगे तू बढ़ती गयी..ना सोचा ना समझा.. कि मै तो पीक्षे ही छूट गया
वादें..सपने ..वो दुनिया.. तुझ बिन तो सब टूट गया..
हर इक पल में मै जलता था जब मुझसे मिलना छूट गया..
कैसे समझाऊं तुझे..कैसे बतलाऊं तुझे.. मुझसे जो मेरी ही अनबन थी..
ना चाहकर भी तूझसे मै दूर इतना अब जाता हूं..
समझे तू भी है जाने तू भी है..कि तुझ बिन मेरा कोई और नहीं..
समझे है तू भी है मेरी टीस को..पर अंजान बनकर खुश रहती है..
हो सकता है मै गलत था..पर उसमे भी तो चाहत तेरी ही थी.. 
मै इंतजार अब भी करता हूं..इक दिन तू वापस आएगी..
अधूरे सपनों को पूरा करने..हां उन वादों को पूरा करने.. जो तेरे भी हैं और मेरे भी.. 
एहसास जो बनकर अब तक बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
हां तुम आओगी..लौट आओगी..ज़रूर आओगी..