Monday, August 19, 2013

'वही पुरानी.... 'एक बात' '


एक बात जो दिल में रखी है...तेरे भी और मेरे भी.
एहसास जो बनकर बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
पुराने बैग की छोटी जेब से.. आज़ फिर वो सामने आयी है..
वो ख्वाहिश तेरे भीतर की..वो हलचल मेरे अंदर की 
ना चाहूं तो अब आती है.. याद तेरे हर पल की..
यादों की उन सिकुड़न से.. कुछ कागज़ पुराने मिले है..
सपनों की स्याही में कुछ अफसाने नज़राने मिले है...
स्याही फीकी पड़ गयी है...लेकिन हां सपने वही है..तेरे भी और मेरे भी..
वादों की लफ्फाज़ी से उसपे..एक कल की दुनिया उकेरी थी..
बाहर की आपाधापी से वाकई..वो दुनिया सुनहरी थी..
तुमने कहा था हम साथ है..ना कोई यहां है ना वहां होगा..
पर वो दुनिया शायद छोटी थी..मेरे जज़्बात तो फिर भी खुश थे..तेरे अरमान बहुतेरे थे..
तू चली गयी उस दुनिया में..जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी   
तू खो गयी थी उस दुनिया में.. जो बहुत बड़ी थी..बहुत बड़ी थी  
आगे आगे तू बढ़ती गयी..ना सोचा ना समझा.. कि मै तो पीक्षे ही छूट गया
वादें..सपने ..वो दुनिया.. तुझ बिन तो सब टूट गया..
हर इक पल में मै जलता था जब मुझसे मिलना छूट गया..
कैसे समझाऊं तुझे..कैसे बतलाऊं तुझे.. मुझसे जो मेरी ही अनबन थी..
ना चाहकर भी तूझसे मै दूर इतना अब जाता हूं..
समझे तू भी है जाने तू भी है..कि तुझ बिन मेरा कोई और नहीं..
समझे है तू भी है मेरी टीस को..पर अंजान बनकर खुश रहती है..
हो सकता है मै गलत था..पर उसमे भी तो चाहत तेरी ही थी.. 
मै इंतजार अब भी करता हूं..इक दिन तू वापस आएगी..
अधूरे सपनों को पूरा करने..हां उन वादों को पूरा करने.. जो तेरे भी हैं और मेरे भी.. 
एहसास जो बनकर अब तक बैठी है..तुझमें भी और मुझमें भी..
हां तुम आओगी..लौट आओगी..ज़रूर आओगी..

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