Friday, December 7, 2012

'sada adda' te 'sadi life'
काफी दिन से उदास था,हताश था, निराश था.. निराश इतना कि लिखना भी छूट सा गया था... क्या करूं जो करना चाहता हूं वो मिल नहीं रहा ,जिससे दूर भागता हूं वो मानो पुरानी प्रेमिका की तरह हर पल आलिंगन को तैयार है।
खैर.... आज छुट्टी है इसलिए कल घर आकर  दोस्त का लैपटॉप उठाया...पासवर्ड से अज्ञात था.. अंदाजा मारा जो सीधे तुर्रे पर लग गया, लैपटॉप खुल गया। इरादे कुछ और थे..पर सामने "साडा अड्डा" दिख गया। फिल्म की काफी तारीफ सुनी थी, सो डबल क्लिक कर दिया।
फिल्म शुरू होती है एक कोटेशन से...
"DEDICATED TO ALL THOSE WHO FOUGHT FOR THEIR DREAMS" लड़ाई तो हमने भी खूब लड़ी, लड़ रहें हैं... लगा कि फिल्म में अपनी भी लाइफ के दो चार सीन होगें।  लेकिन दो चार नहीं..यहां तो मानो फिल्म की आधी कहानी हमें ही DEDICATED थी..पहले ही सीन में अपना रूम दिखा और फिर तुरंत बाद सफल यादव और जोगी के रूप में अपने रूमी.. ये कहानी है इरफान,जोगी,कबीर,रजत,समीर और सफल यादव नाम के 6 दोस्तों की जो मैं और मेरे दोस्तों की तरह अलग-अलग हिस्सों से अपने सपनें सच करने दिल्ली आएं हैं।
हकीकत की तरह फिल्म में भी लाइफ कभी भागती तो कभी दौड़ती और इस दौड़ में ना जाने कितनी बार कितने मखौटे बदलती.. मखौटा कभी अच्छा दोस्त बनने का,कभी अच्छा इम्प्लॉयी बनने का,  कभी अच्छा ब्वायफ्रेंड तो कभी अच्छा बेटा और भाई बनने का।  मखौटे बदलना आसान है ..लेकिन जिंदगी आसान कहां है, ना सच में और ना इस फिल्म में। बारी बारी से सभी दोस्तों को जिंदगी जबरदस्त ठोकर मारती है... किसी का प्यार छूटता है.. तो किसी की नौकरी, किसी के सपने बिखरते है तो कोई उम्मीदों के बोझ तले इतना दब जाता हैं कि उसकी जीने की ख्वाहिशें भी सिसक कर दम तोड़ देती है.. आईएस ना बन पाने के कारण "सफल यादव" आत्महत्या कर लेते है । प्रोजेक्ट के रूप में इरफान की दिन रात की मेहनत को बॉस कूड़ेदान में डाल देता है, कबीर को बहन की और खुद की शादी के लिए एक अच्छी नौकरी चाहिए,रजत अपने उस पिता को याद करते हुए रोता जो उसे खर्चा तो देता है लेकिन एक साल तक उसकी शक्ल देखने से मना कर देता है, समीर के हांथ आयी हॉलीवुड फिल्म अब उसके हांथ में नहीं..हालाकि इन सब के बीच जोगी कुछ उम्मीद जरूर जगाता है..
बुरे हालातों में फँसे इन दोस्तों के साथ बहुत कुछ और भी बुरा होता.. एक समय ऐसा भी आता है कि लगता है कि बस.. अब सब कुछ यहीं खत्म..ये सबकुछ खत्म होने वाला एहसास, एक ना एक बार हम सभी को अपनी लाइफ में जरूर होता है.... और सच मानिए यहां से वाकई सब कुछ खत्म हो सकता है...सब कुछ बिखर सकता हैं और अपने इन बिखरे सपनों को आप समेटकर अपनी यांदों के पिटारे में बंद कर सकतें हैं ..जिस पर आप "पापा के अधूरे सपने" का तमगा लगाकर अपने बच्चों को गिफ्ट कर सकते हैं । लेकिन नहीं आपकी हर ending आपके नए सपनो की begining होनी चाहिए। जैसे इन सब दोस्तों की होती है....एक बार फिर सभी खड़े होते हैं ..आगे बढते हैं ..और हासिल करते हैं ..वो सब जो उन्होने सोचा था..वो सब जो इनकी जिंदगी थे..इनके सपने थे।
इस फिल्म को देखने के बाद मैं खुद में एक नयी energy महसूस कर रहा हूं।  एक बार फिर मैं अटल निश्चय के साथ खड़ा हूं।
जाते जाते भी ये फिल्म एक कुटेशन के साथ खत्म हैती है...
"THE ONLY THAT WILL STOP YOU FROM FULLFILLING YOUR DREAM IS YOU"   
और मै खुद अपने सपनों के लिए रूकावट नहीं बनना चाहता इसलिए अब ना मैं उदास हूं और ना निराश..हताश तो बिल्कुल नहीं..। मै शाहरूख ख़ान ना सही पर लड़ूंगा तो मैं भी.. जब तक हैं जान..जब तक हैं जान...। 

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