Wednesday, February 23, 2011

क्या लिखूं

कई दिनों से सोच रहा हूँ कि कुछ लिखूं
पर सोचते ही ख्याल आता है
क्या लिखूं!
देश में व्याप्त भ्रस्टाचार कि बहस लिखूं
या अरब देशों स्थिरता के लिए फैली अस्थिरता लिखूं
मिस्र कि विजयी आवाज़ लिखूं
या रजा कि बंद होती बोलती लिखूं !
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ?
फिर दिमाग में देवगुरु कि बात गूंजी
बच्चा शरुआत में कुछ हल्का लिख
अब फिर ख्याल आया
कि हल्का क्या लिखूं
उस लूटे पिटे चाँद को लिखूं
या उन चेहरों को
जिन्हें में रोज़ बस में देखता हूँ
इन चलती बंद होती हवाओं को को लिखूं
या आते जाते मौसम को लिखूं
अचानक सोचा कि चलो दोस्तों के बारे में लिखूं
जो कि सबसे आसान है!
पर यहाँ पर भी kanfuse हो गए
फिर सोचने लगे कि किस दोस्त के बारे में लिखूं
और क्या लिखूं!
विकास की बात का व्याखान लिखूं
या अनुभा और सूफी की मीठी जुबां लिखूं
अर्चित की चुलबुली बकवास लिखूं या दस्तक एक पहल की दास्ताँ लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं
फुले की रोज़ बदलती पहचान लिखूं या
अलका की मीठी मुस्कान लिखूं
पंखुरी का भोला पण लिखूं या
कृति का सयानापन लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं
संध्या मनीषा का अपनापन लिखूं या
सपना का अकेला पन लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखू
सौमित्र का अहसान लिखूं या
मेराज को देख कर होने वाली ख़ुशी का अहसास लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं
ये मुझे कभी समय न आया
इसलिए शायद कभी कुछ लिख न पाया!!!

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